उत्तराखण्ड
4 नवम्बर 2024
छठी मैया कौन हैं? जानिए क्या है इसकी पौराणिक कथा!
काशीपुर। इस साल छठ पर्व 05 अक्टूबर मंगलवार से शुरू हो रहा है। छठ पूजा के दौरान 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखने का नियम है। मान्यता है कि छठी माता की पूजा करने से व्रती को आरोग्य, समृद्धि और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
इस दौरान उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से छठ माता की पूजा करने का नियम है। तो आइए जानते हैं कि छठ माता की उत्पत्ति कैसे हुई?
छठी मैया कौन हैं
मार्कंडेय पुराण में उल्लेख है कि जब ब्रह्मा जी ने धरती का निर्माण करना शुरू किया तो उन्होंने प्रकृति की भी रचना की। इसके बाद देवी प्रकृति माता ने खुद को छह रूपों में विभाजित कर लिया। जिसका छठा भाग छठी मैया के नाम से जाना गया। इसी तरह छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है। देवी के इस रूप की पूजा बच्चे के जन्म के छठे दिन की जाती है, जिससे बच्चे को अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होती है।
भगवान शिव से संबंध
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवसेना या छठी मैया का विवाह भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय से हुआ था। इस लिहाज से वे भगवान शिव की पुत्रवधू हुईं। कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया को सूर्य देव की बहन भी कहा जाता है।
क्या पौराणिक कथा
छठी मैया की उत्पत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार, राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। इस बात से वे दोनों बहुत दुखी थे। जब वे संतान की इच्छा लेकर ऋषि कश्यप के पास पहुंचे तो ऋषि ने उन्हें संतान सुख प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। राजा ने ठीक वैसा ही किया, जिससे उन्हें शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन बालक मृत था। पुत्र वियोग के दुख में राजा प्रियंवद ने अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया, लेकिन उसी क्षण कन्या देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि मैं सृष्टि की मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मैं षष्ठी कहलाऊंगी। हे राजन, आप मेरी पूजा करें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें। राजा ने ऐसा ही किया और शीघ्र ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति भी हुई।