उत्तराखण्ड के पूर्णागिरी पर्वत पर विराजमान मां पूर्णागिरी देवी धाम

उत्तराखण्ड के पूर्णागिरी पर्वत पर विराजमान मां पूर्णागिरी देवी धाम

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धर्म
13 मई 2023
उत्तराखण्ड के पूर्णागिरी पर्वत पर विराजमान मां पूर्णागिरी देवी धाम
पूर्णागिरि मंदिर, देवभूमि उत्तराखण्ड के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर है। यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। यह मान्यता है कि जब भगवान शिवजी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे द्य तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के अंग के टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरी द्य कथा के अनुसार जहा जहा देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए द्य माता सती का “नाभि” अंग चम्पावत जिले के “पूर्णा” पर्वत पर गिरने से माँ “पूर्णागिरी मंदिर” की स्थापना हुई द्य

इस शक्तिपीठ की अनोखी कहानी है, चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वाेच्च स्थान प्राप्त हुआ है। पूर्णागिरि पर्वत पर विराजमान देवी ने कई ऐसे चमत्कार भी किए जो लोगों को मां पूर्णागिरि की दैवीय शक्ति का अहसास कराते हैं। धाम की ओर रवाना होने से पहले देवी के द्वारपाल के रूप में भैरव मंदिर में बाबा भैरव नाथ की पूजा करने की परंपरा है।

माना जाता है कि धाम के द्वार पर बाबा भैरवनाथ ही देवी के दर्शन के लिए जाने की अनुमति देते हैं। दर्शन कर लौटते वक्त रास्ते में स्थापित महाकाली और झूठा मंदिर की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार, पूर्णागिरि धाम में टुन्ना, शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों ने आतंक मचा रखा था, इन राक्षसों की वजह से देवी-देवता भी आतंकित थे। तब मां पूर्णागिरि ने महाकाली का रूप धारण किया और टुन्ना राक्षस का वध कर दिया। इस मंदिर के पूर्व में पहले बलि दी जाती थी, लेकिन प्रशासन की पहल पर अब बलि प्रथा पूरी तरह से रोक दिया गया है। श्रद्धालु अब नारियल फोड़कर प्रतिकात्मक बलि की रस्म पूरी करते हैं। पूर्णागिरि पर्वत चोटी पर विराजमान देवी ने कई ऐसे चमत्कार भी किए जो लोगों को मां पूर्णागिरि की दैवीय शक्ति का अहसास कराते हैं। इस अहसास की वजह से भारत के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।

जम्मू में स्थित माता वैष्णो देवी की ही भांति माता पूर्णागिरि का यह मंदिर भी सभी श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। माता पूर्णागिरी के इस मंदिर क्षेत्र के मनोरम दृष्यों और इसके वातावरण में फैले सौन्दर्य को जिस प्रकार से प्राकृतिक सौंदर्य और सम्पदा का वरदान मिला है उसके आगे तो मानो स्विटजरलैंड और कश्मीर का सौंदर्य भी फिका लगने लगता है। लेकिन, इस क्षेत्र का दूर्भाग्य यह है कि यहां केवल धर्म, आस्था और मान्यता को ही आधार मानकर यहां के दुर्गम घने जंगलों में लोग कुछ देर के लिए आते हैं।

कैसे जायें –
माता पूर्णागिरी के दर्शन करने के लिए जाने पर हमें सबसे पहले उत्तरखंड राज्य के टनकपुर शहर से होकर जाना होता है। और टनकपुर शहर से माता पूर्णागिरी के इस शक्तिपीठ मंदिर की दूरी करीब 23 किमी है।

सड़क मार्ग से दृ
टनकपुर शहर, सड़क और रेल जैसी दोनों ही सुविधाओं से जुड़ा हुआ है इसलिए पूर्णागिरी मन्दिर का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में ही है। अगर आप रोडवेज बस के द्वारा दिल्ली से यहां जाना चाहते हैं तो बता दें कि टनकपुर के लिए दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से रोडवेज बसों की नियमित सेवा मिल जाती है। इसके अलावा बरेली, लखनऊ और आगरा सहीत उत्तराखंड के आस-पास के अन्य कई राज्यों से प्राइवेट और सरकारी बसों की सीधी सेवाएं उपलब्ध हैं।

रेल मार्ग से –
अगर आप यहां रेल के द्वारा जाना चाहते हैं तो यहां का सबसे नजदिकी रेलवे स्टेशन (टीपीयू) भी इसी टनकपुर शहर में स्थित है।

हवाई जहाज से –
लेकिन, अगर कोई यहां हवाई जहाज से आना चाहे तो उसके लिए यहां का निकटतम हवाई अड़डा पन्तनगर में है जहां से मंदिर की दूरी करीब 120 किमी है।

टनकपुर शहर से आगे –
टनकपुर के रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर पहुंचकर पुर्णागिरि माता मंदिर तक जाने के लिए आपको यहां शेयरिंग जीप की सवारी मिल जायेगी जो कम से कम 50 से 60 रुपये में मंदिर तक पहुंचा देते हैं। लेकिन, अगर आप यहां से ऑटो या फिर टैक्सी बुक करके भी जाना चाहें तो उसकी भी सविधा सुविधा मिल जाती हैं। और, अगर आपको अपने ही किसी वाहन से वहां पहुंचना है तो उसके लिए यहां 10 रुपये की एक पर्ची कटवानी होती है

कब जायें –
आप यहां वर्ष के किसी भी मौसम में और किसी भी महीने में जा सकते हैं, लेकिन, कोशिश करें कि नवरात्र के अवसर पर यहां अधिक भीड़ होती है। इसलिए नवरात्र के समय में यहां रात हो या दिन हर समय लंबी-लंबी लाइनें लगी रहतीं हैं। ऐसे में यहां होटल और धर्मशालाओं में भी जगह नहीं मिल पाती। इसलिए दूर-दराज के क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं को नवरात्र के विशेष अवसरों पर यहां जाने से बचना चाहिए। इसके अलावा यहां नये साल के पहले दिन और साप्ताहिक अवकाश जैसे दिनों में भी भीड़ देखने को मिलती है।

भोजन की सुविधा दृ
टनकपुर शहर पहाड़ी राज्य के साथ-साथ मैदानी क्षेत्र से भी लगा हुआ है। इसके अलावा पिथौरागढ़ जाने वाले अधिकतर सैलानी इसी सड़क मार्ग से होकर जाते हैं। इसलिए यहां ऐसे कई सारे होटल और ढाबे हैं जिनमें हर प्रकार के भोजन सुविधा मिल जाती है। यहां कोई आलीशाल होटल या रेस्टॉरेंट नहीं मिलेंगे। लेकिन, आपके बजट के हिसाब से यहां भोजन की अच्छी व्यवस्था मिल जाती है।

कहां ठहरें –
पूर्णागिरी पर्वत से लगभग 1 किमी पहले यहां बहुत सारी होटल और धर्मशालाएं मिल जाते हैं। अगर आपको यहां रात को ठहरना है तो आपके बजट के अनुसार अच्छी सुविधाओं वाले कई होटल या धर्मशालाएं मिल जायेंगी। लेकिन, अगर आप यहां रूकना नहीं चाहते और केवल दर्शन करके वापस जाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां अपना सामान लॉकर में रखने और स्नान वगैरह के लिए भी यहां की होटल और धर्मशालाओं में यह सुविधा मुफ्त में मिल जाती है। लेकिन, उसके लिए यहां उनकी एक शर्त यही होती है कि आपको उन्हीं के पास से प्रसाद खरीदना होगा। इस प्रसाद की कीमत कम से कम 150 रुपये से लेकर 400 या 500 रुपये तक की हो सकती है। अगर आप यहां अपना सामान किसी भी लॉकर में रखना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि उसमें कोई भी किमती सामान छोड़कर ना जायें। इसके अलावा, टनकपुर शहर में भी ठहरा जा सकता है।

मंदिर के लिए पैदल यात्रा –
ध्यान रखें कि धर्मशाला से पैदल चल कर माता पूर्णागिरी के दर्शन करने तक के रास्ते में आपको कम से कम साढ़े 3 किलोमीटर तक चढ़ाई वाले रास्ते पर चलना होता है। इसके बाद वापसी में भी साढ़े 3 किलोमीटर की ही यात्रा करनी होती है। यानी धर्मशाला से चलकर वापस धर्मशाला तक आने में आपको यहां कम से कम 7 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है

दो अलग-अलग रास्ते –
मंदिर में माता के दर्शनों के लिए पैदल यात्रा शुरू करने से पहले यहां हम आपको बता दें कि माता पूर्णागिरी की इस पहाड़ी की चढाई के लिए दो अलग-अलग रास्ते बने हुए हैं। और दोनों ही रास्तों से यहां से आस-पास का नजारा भव्य और आकर्षक लगता है। लेकिन, अगर आप पूर्णागिरी पर्वत की प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं तो कोशिश करें की यहां सीढ़ियों के रास्ते जाने से बचें और सपाट रास्ते का ही प्रयोग करें। क्योंकि यहां आने वाले अधिकतर श्रद्धालुओं को माता वैष्णों देवी की पैदल यात्रा वाले रास्ते की तरह ही लगने लगता है। यहां भी उसी तरह से अधिकतर पैदल रास्ते को टीन के शेड से ढंक दिया गया है ताकि श्रद्धालुओं को पैदल चलने में यहां किसी भी मौसम में परेशानी ना हो।

मनमोहक दृश्य –
इस पैदल यात्रा में धर्मशाला से निकल कर थोड़ा आगे जाने के बाद रास्ते में एक प्रवेश द्वार बना हुआ मिल जाता है। इसी प्रवेश द्वार से आपको यहां दो अलग-अलग रास्ते दिखते हैं। जिसमें से एक सीढ़ियों वाला रास्ता है और दूसरा सपाट चढ़ाई वाला। अगर आप यहां प्लेन या सपाट रास्ते से चढ़ाई करेंगे तो करीब 2 किमी का यह रास्ता एक दम शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर मिलेगा। साथ ही साथ यहां आते-जाते श्रद्धालुओं को पूरे जोश और श्रद्धा के साथ माता के जयकारे लगाते हुए देखा जा सकता है।

करीब करीब 2 किमी के इस पैदल चढ़ाई वाले पहाड़ी रास्ते की ऊंचाई को पार करने के बाद मुख्य मंदिर से थोड़ा पहले ही ‘झूठे का मंदिर’ नाम के एक छोटे से मंदिर के पास जाकर ये दोनों ही पैदल रास्ते मिल जाते हैं और यहां से दोनों ही रास्ते से आने वाले श्रद्धालु एक साथ आगे बढ़ते जाते हैं। यहां से करीब 1 किमी और आगे जाने के बाद रास्ते में काली माता का एक अन्य मंदिर आता है। यहां से आगे का रास्ता एक सीधी चढ़ाई वाला रास्ता है

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