कोरोना का करेंसी नोट कनेक्शन

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उत्तराखण्ड
17 मार्च 2020
कोरोना का करेंसी नोट कनेक्शन
काशीपुर। कोरोना की महामारी के सायरन बजते ही सरकारों की नींद टूट गई। अब इसके असर से बचने के लिए उपाय गिनाए जा रहे हैं। इन्हीं उपायों में इस संक्रमण से बचने का एक करेंसी नोट कनेक्शन भी है। डॉक्टरों का कहना है कि करेंसी नोट भी संक्रमण का एक बड़ा माध्यम है। इससे बीमारियां फैलने का पूरा खतरा है। करेंसी पर हुए एक अध्ययन का हवाला देते हुए डाक्टरो ने कोरोना के शोर के बीच व्यापारियों और उपभोक्ताओं को सावधानी बरतने की सलाह दी है। डॉक्टर बोले-नोटों पर पनत आते हैं सूक्ष्म जीव। वह सटीक है कि करेंसी नोट से करीब 78 बीमारियां फैलती हैं। नोटों में वैक्टीरिया भी होते हैं, जो गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। उनका कहना है कि मुद्रा नोटों पर अक्सर सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं, जो नोट पर ही एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना वायरस के मामले में फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि यह सूखे स्थान पर कितने समय तक जीवित रह सकता है

इसलिए सावधानी बरतना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि एटीएम व मोबाइल के इस्तेमाल में भी संक्रमण के खतरे कम नहीं हैं। इसलिए बचाव के जो हाथ धोने व सेनेटाइजर के तरीके बताए जा रहे हैं, उन्हें अपनाएं। व्यापारियों को विभिन्न माध्यमों से जागरूक किया जा रहा है कि वे करेंसी का लेनदेन कम करें, अन्य माध्यम का अधिक इस्तेमाल करें। नोटों को गिनते समय जीभ को न छुएं। उनका कहना है कि तमाम शोध बताते हैं कि करेंसी से संक्रामकता फैलती है, लोग नोटों को गिनते हुए अंगुली बार-बार जीभ पर लगाते हैं। आज डिजिटल पेमेंट पर ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन इस पर सरकार को बैंक चार्ज खत्म करना चाहिए, ताकि लोग इससे जुड़ें। उन्होंने यह भी कहा कि संक्रमण से बचने के लिए सरकार को पॉलीमर करेंसी पर भी ध्यान देना चाहिए, यह कई देशों में लागू है। कुछ जागरूक नागरिकों का मत है कि अनगिनत लोग तो सिर्फ इलाज कराने में ही गरीब हो जाते हैं, ज्यादातर खर्च प्राथमिक इलाज में ही हो जाता है। दवाओं की लागत लोगों को सबसे ज्यादा गरीब बना देती है। कोरोना वायरस का विस्फोट इस लिहाज से दोहरी मार करने वाला है। आने वाले दिनों में चीजों की कीमतें बढ़ेंगी। कुछ लोगों की नाराजगी कहती है कि आयुष्मान भारत हमें इस खतरनाक वायरस से शायद ही बचा सके, यह योजना पहले के सरकारी बीमा प्रयोगों की तरह कंपनियों और प्राइवेट अस्पतालों के बीच गड़बड़ी की जद में है।

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