दिल्ली
3 अप्रैल 2021
प्राइवेट सेक्टर में अब इन 4 सरकारी बैंकों की बारी
दिल्ली। पब्लिक सेक्टर के कई बैंक अब पूंजी जुटाने के लिए अपनी संपत्तियों की बिक्री के प्लान को ठंडे बस्ते में डाल रहे हैं. इन सरकारी बैंकों को इंतज़ार है कि केंद्र सरकार के निजीकरण प्लान में कहीं उनका तो नाम नहीं है. इसपर स्थिति कुछ साफ होने के बाद ही वे पूंजी जुटाने को लेकर कोई अंतिम फैसला लेना चाहते हैं. दरअसल, इन सरकारी बैंकों का सोचना है कि प्राइवेट सेक्टर उन बैंकों में ज्यादा रुचि दिखा सकते हैं, जिनके पास दूसरे बिज़नेस भी है. प्राइवेट सेक्टर के निवेशकों के पास इन बिज़नेस को बढ़ाने का मौका मिल सकेगा. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन कदमों से ग्राहकों पर कोई खास असर नहीं होगा. लेकिन निवेशकों पर इसका असर हो सकता है. सोमवार को इस खबर के बाद शेयरों में गिरावट आ सकती है.
पिछले सप्ताह ही सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी हाउसिंग फाइनेंस ईकाई सेंट बैंक होम फाइनेंस की बिक्री के लिए लेनदेन को टाल दिया है. लंबे समय से इंतजार था कि इस ट्रांजैक्शन को 31 मार्च 2021 तक पूरा कर लिया जाएगा. इस डील के तौर पर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को करीब 160 करोड़ रुपये मिलने थे.
सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन को लेकर चर्चाएं तेज है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra), इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India), बैंक ऑफ इंडिया (Bank of India) के प्राइवेटाइजेशन पर काम चल रहा है.
अच्छे दौर में सरकारी बैंकों ने बढ़ाया था निवेश
इसी प्रकार बैंक ऑफ इंडिया भी अपनी लाइफ इंश्योरेंस ईकाई स्टार यूनियन डाईची में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है. अच्छे दौर में पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने फाइनेंशियल सेक्टर की ईकाईयों में अच्छा खासा निवेश किया था. लेकिन, भारतीय रिज़र्व बैंक इन बैंकों को अपनी सब्सिडियरी सेटअप करने के लिए जरूरी मंजूरी देने से हिचकने लगा है.
बजट में वित्त मंत्री ने निजीकरण का किया था ऐलान
बजट 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्र सरकार इस वित्तीय वर्ष में दो सरकारी बैंकों और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण करेगी. नीति आयोग ने उन 5 पब्लिक सेक्टर बैंकों को रखने की सिफारिश की है, जिनका हाल ही में समेकन हुआ है. ये पांच पब्लिक सेक्टर बैंक – बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक हैं. इसका मतलब है कि संभवत: सरकार अब निजीकरण के लिए इन पांचों बैंकों को नहीं चुनेगी.
नीति आयोग ने इसका कारण बताते हुए कहा है कि अभी इन बैंकों में दूसरे बैंका के विलय की प्रक्रिया पूरी हुई है और अभी इससे होने वाले फायदे के बारे में पूरी जानकारी नहीं पता चल सकती है. शुरुआती दौर में इन बैंकों का कुल खर्च तार्किक तौर पर उचित होगा. लेकिन आने वाले सालों में इनका प्रदर्शन बेहतर हो सकेगा और अर्थव्यवस्था के विकास में इनका योगदान बढ़ेगा.