
उत्तराखण्ड
29 मई 2021
बच्चों को लगी मोबाइल की लत, माता पिता की बड़ी समस्या
काशीपुर। कभी बच्चों के लिए मोबाइल को घातक माना जाता था। अभिभावकों द्वारा बच्चों को सख्त हिदायत दी जाती थी की मोबाइल के बारे में अभी नहीं सोचों पढ़ाई पर जोर लगाओ। पर कौन जानता था कि जब पूरी दुनिया के लोग विपदा का सामना कर रहे होंगे तो बच्चे इसी मोबाइल के सबसे नजदीक होंगे। कोरोना महामारी के संक्रमण के कारण जब देश लॉकडाउन के भयावह स्थिति से गुजर रहा था तब बच्चों की पढ़ाई भी बाधित हो गई थी। इसे निरंतर रखने के लिए नया प्रयोग किया गया ऑनलाइन क्लासेज से बच्चों को जोड़े रखने का। इसके बाद तो यह ट्रेंड सा हो गया जो अभिभावक बच्चों को मोबाइल से दूर रखते थे वे स्वयं बच्चों को मोबाइल देकर जूम एप, गुगल मीट, यू-ट्यूब, ग्रुप एप् आदि के बारे में बता रहे है। इसका असर यह हुआ कि अब बच्चों में मोबाइल की ऐसी लत लगी की वे दिनभर उससे चिपके रहते है। ऑनलाइन तो कम दिन भर मोबाइल गेम खेलने में अपने को मशगूल रख रहे है। इससे अभिभावकों को अब परेशानी होने लगी है। अभिभावकों के मोबाइल का डाटा पूरा खत्म कर रहे है। मोबाइल एक और बच्चे दो, तीन तो और परेशानी। बच्चे अब तो अपना पर्सनल मोबाइल का जिद पकड़ के बैठ रहे है। ऐसे में लॉकडाउन का समय और धंधा सभी का मंदा, और कमाई का हर जरिया बंद हो गया है। तो दिमागी टेंशन होना लाजमी है। उस पर से रिचार्ज कराने की टेंशन। कई अभिभावक तो रिचार्ज भी नहीं करा रहे है। कई बच्चों का ऑनलाइन क्लास भी छूट जा रहा है। जीवन चलाए या मोबाइल का रिचार्ज करें। इससे भी बड़ी बात यह हो रही है कि बच्चों के गर्दन, रीढ़ में अत्यधिक दर्द की शिकायत आ रही है। उपर से आंखों की परेशानी हो रही है। आंख लाल हो रहा हैं, पानी आ रहा है। मोबाइल रेडियेशन भी खतरे का बना बड़ा कारण बन रहा है। लंबे समय तक बच्चे मोबाइल के साथ रहने लगे हैं। खासकर बच्चे रात के वक्त अभिभावकों से यह शिकायत कर रहे है। इससे परेशानी एक नहीं कई गुणा ज्यादा माता-पिता के सामने आ खड़ा हो रहा है। अब बच्चों की यह लत माता-पिता के लिए सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें। पढ़ाई भी करानी हैं, सेहत भी बचानी हैं, स्वस्थ्य भी रहना है। यह संभव हो तो कैसे।
पहले पिता का करते थे इंतजार अब मोबाइल का कर रहे इंतजार
मोबाइल के संपर्क में आने से पहले बच्चे दिनभर हर पल अपने पिता के घर आने की बाट जोहते थे। अपनी मां से हमेशा पूछते थे कि पापा कब आएंगे। इससे इतर अब बच्चे जब मोबाइल के आदी हो गए है तो वे पापा के आने का इंतजार कम उनके पास के मोबाइल लेने का इंतजार करते है। घर आए नहीं की मोबाइल लेकर चिपक गए। तरह-तरह के लुभावने गेम ओपन कर दुनिया से बेखबर होकर शुरू हो जाते है। बैठ कर, लेट कर, दीवार पर ओट लगाकर। सबसे ज्यादा तो लेट कर मोबाइल से खेलना खतरनाक साबित हो रहा है।