उत्तर प्रदेश
12 जनवरी 2025
महाकुंभ – कहीं जीवन-मरण के फेर से बाहर निकलने की जिज्ञासा
प्रयागराज। इसे क्या कहेंगे महाकुंभ के विराट और वैभवशाली स्वरूप में सबसे ज्यादा वैराग्य का भाव छाया है। हर तरफ तरह-तरह के अखाड़े और साधु नजर आएंगे। पर सबसे दिलचस्प है स्नान के लिए आए लोगों का कौतुहल। गांवों और छोटे शहरों से आए लोग साधुओं को देखते हैं और उनके पास जाकर सुनने और समझने का प्रयास भी करते हैं। कुछ के सवाल भविष्य को लेकर होते हैं तो कहीं जीवन-मरण के फेर से बाहर निकलने की जिज्ञासा होती है।
आखिर ऐसा क्या है जो इन साधुओं की तरफ दुनियादारी में फंसे लोगों को खींचता है। पंजाब के संगरूर से आए दिलजीत कहते हैं, हमें इन्हें नजदीक से देखने और सुनसे का और कहां मौका मिलेगा। यहां हम इनसे सवाल पूछ सकते हैं, जूना अखाड़े से जुड़े योगानंद से एक नवयुवक सवाल पूछता है आप कहते हैं कि गृहस्थ रहकर भी दायित्वों का निर्वाह किया जा सकता है और ईश्वर की उपासना की जा सकती है तो फिर संन्यास की जरूरत क्या है। इस पर वे कहते हैं कि अगर साधु नहीं होंगे तो समाज को दिशा कौन देगा। साधु ही तो त्याग का संदेश देते हैं। अगर कोई विपदा आती है तो साधु समाज देश के नवनिर्माण में आगे रहता है।
144 साल…12 पूर्ण कुंभ के बाद आता है महाकुंभ
अर्ध कुंभ – हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। इसे कुंभ का आधा चक्र माना जाता है। खगोलीय गणनाओं के अनुसार, जब बृहस्पति वृश्चिक राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब अर्ध कुंभ का आयोजन होता है
कुंभ – हर 12 साल में चार स्थलों – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में कुंभ आयोजित होता है। कुंभ मेले की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसमें अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ था
पूर्ण कुंभ – हर 12 साल में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ का पूर्ण रूप माना जाता है और इसका महत्व अन्य कुंभ मेलों से अधिक है
महाकुंभ – भारतीय धार्मिक आयोजनों का सबसे बड़ा पर्व है, जो 12 पूर्ण कुंभ के बाद हर 144 साल में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ मेले का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण रूप माना जाता है