उत्तराखण्ड
19 जनवरी 2025
महिलाएं सोना, चांदी, हीरे के अलावा फैन्सी ज्वेलरी को भी खासा पसंद कर रही
देहरादून। गहना खरीदने की बात हो तो महिलाएं सबसे पहले गोल्ड की बात करती हैं. लेकिन बदलते जमाने में आज की महिलाएं सोना, चांदी, हीरे के अलावा फैन्सी ज्वेलरी को भी खासा पसंद कर रही हैं. इनमें फैशन बैंबू या रिंगाल के आभूषण भी काफी पसंद किए जा रहे हैं.
बैंबू यानि बांस…और बांस से बने आभूषण इन दिनों ट्रेंड में हैं. भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी बांस की ज्वेलरी पसंद की जा रही है. खास बात ये है कि उत्तराखंड में भी बांस की ज्वेलरी को बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए राज्यभर की कई महिलाओं और पुरुषों को ट्रेंड भी किया जा रहा है. उत्तराखंड में बैंबू बोर्ड और जायका की ओर से देहरादून में 7 दिन का ट्रेनिंग सेशन महिलाओं के लिए रखा गया. यहां उन्हें बांस की ज्वेलरी बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. देहरादून, काशीपुर और हल्द्वानी में ये ट्रेनिंग सेशन रखे गये थे.
बांस के सामानों का किचन से लेकर गार्डन तक हर जगह होता है इस्तेमालरू दुनिया में ऐसी कई वनस्पतियां, वृक्ष और तमाम प्राकृतिक चीजें हैं, जिनका अलग-अलग तरीके से यूज किया जाता है. इसी में एक बांस (बैंबू) भी है. जिसका प्रयोग घर के बेडरूम से लेकर किचन और खाने के व्यंजन तक में भी हो रहा है. उधर देश के कई राज्यों में बांस को महिलाओं की ज्वेलरी बनाने में भी प्रयोग किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि बदलते फैशन के साथ अब महिलाओं की ज्वेलरी में भी नए प्रयोग हो रहे हैं. इसी प्रयोग के तहत बांस से बनी ज्वेलरी का नया बाजार खड़ा हो रहा है. हालांकि देश के कई बड़े शहरों में ऐसे आभूषणों का ट्रेंड बढ़ रहा है. लेकिन उत्तराखंड इस नए प्रयोग में अब दाखिल होने जा रहे हैं.
उत्तराखंड में बैंबू बोर्ड और जायका मिलकर महिलाओं की ज्वेलरी से जुड़े इस बाजार को राज्य से भी जोड़ना चाहते हैं और इसीलिए प्रदेश में विभिन्न महिला समूहों को इस हुनर से जोड़ा जा रहा है. देहरादून में 7 दिन का ट्रेनिंग सेशन महिलाओं द्वारा किया गया है. इसी तरह काशीपुर और हल्द्वानी में भी महिला समूहों के लिए ऐसे प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं. अच्छी बात यह है कि इसमें बढ़-चढ़कर महिलाएं हिस्सा ले रही हैं. साथ ही इस हुनर को दिलचस्पी के साथ सीखने वाली महिलाओं को भविष्य में एडवांस ट्रेनिंग देने का भी प्लान तैयार किया गया है
वैसे उत्तराखंड से बाहर नॉर्थ ईस्ट के कई राज्यों में बांस से बने विभिन्न प्रोडक्ट बनाए जाते रहे हैं, लेकिन महिलाओं के आभूषण के रूप में नया प्रयोग इन राज्यों में हुआ है. ऐसे ही प्रोडक्ट बनाने वाले त्रिपुरा के एक्सपर्ट उत्तराखंड पहुंचकर इन महिलाओं को ट्रेनिंग दे रहे हैं. त्रिपुरा से आए मास्टर ट्रेनर बताते हैं कि भारत में महिलाओं के बांस से बने आभूषण का एक बड़ा बाजार है. देश के बड़े शहरों में इसकी भारी डिमांड भी है.
उत्तराखंड में उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी और कुमाऊं के बागेश्वर चंपावत जैसे पर्वतीय जनपदों से भी महिलाएं ट्रेनिंग सेंटर में पहुंचकर हुनरमंद बन रही हैं. इसके अलावा पुरुष वर्ग भी बाजार की संभावनाओं को देखते हुए इस कला को सीख रहे हैं. टिहरी की रहने वाली आरती गुनसोला कहती हैं, कि बाजार में इन प्रोडक्ट्स की काफी मांग है और इसे सीखने के बाद वह उत्तराखंड में इसके बाजार को आगे बढ़ाने का काम करेंगे साथ ही दूसरी महिलाओं को भी इसका प्रशिक्षण देंगी.
पहाड़ों पर बांस की उपलब्धता नहीं है. ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में बांस की ही प्रजाति रिंगाल से इन प्रोडक्ट को बनाने का प्रयोग हो रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि एक्सपर्ट के अनुसार इस प्रोडक्ट की बिकवाली में 80 प्रतिशत तक का प्रॉफिट मार्जन होता है. इस प्रोडक्ट को बनाने के लिए रॉ पदार्थ के रूप में बांस को खरीदना होता है. एक्सपर्ट बताते हैं कि करीब ढाई सौ से ₹300 में खरीदा गया बांस का एक डंडा एक लाख रुपये (₹100,000) के प्रोडक्ट बना सकता है. यानी करीब ₹300 लगाकर ₹100,000 का सामान तैयार किया जा सकता है.
जायका और बैंबू बोर्ड ने ज्वेलरी प्रोडक्ट का बेहतर बाजार उपलब्ध कराने का भी प्लान तैयार किया है. उत्तराखंड में प्रशिक्षण देने के बाद न केवल रॉ मटेरियल की उपलब्धता पर ध्यान दिया जा रहा है, बल्कि ग्लोबल बाजार को भी इससे जोड़ने के प्रयास हो रहे हैं. इसके लिए तमाम बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म का भी सहारा लेने की तैयारी है. उत्तराखंड में बांस की उपलब्धता काफी कम है, ऐसे मे बांस के प्लांटेशन के लिए भी रणनीति बन रही है, ताकि रॉ मटेरियल की आसानी से उपलब्धता हो सके.