पंचायत चुनाव - उप समिति ने ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय लिया

पंचायत चुनाव – उप समिति ने ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय लिया

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उत्तराखण्ड
8 जून 2025
पंचायत चुनाव – उप समिति ने ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय लिया
देहरादून। देहरादून। पंचायतों में संवैधानिक संकट के बीच मंत्रिमंडलीय उप समिति ने ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय ले लिया है. उपसमिति जल्द ही अपनी रिकमेंडेशन मुख्यमंत्री को सौंपेगी. जिसके बाद पंचायत चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण का फार्मूला तय हो जाएगा।

राज्य में जल्द ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए जाने को लेकर एक तरफ कोर्ट का दबाव है तो दूसरी तरफ संवैधानिक संकट की स्थिति के चलते इस पर सरकार को जल्द से जल्द निर्णय लेना है. ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने चुनाव में अड़ंगा बने ओबीसी आरक्षण पर मंत्रिमंडलीय उप समिति गठित की है. खास बात यह है कि उप समिति बनने के बाद वन मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में आरक्षण पर अंतिम निर्णय भी ले लिया गया है.

पंचायत में ओबीसी आरक्षण के लिए पूर्व में एकल सदस्यीय समर्पित आयोग गठित किया गया था. जिसने अपनी रिपोर्ट पूर्व में ही सरकार को सौंप दी थी. ऐसे में राज्य सरकार इस आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण करवाना चाहती थी. जिसके चलते मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया गया.

आरक्षण की स्थिति को देखें तो मौजूदा समय में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 22 प्रतिशत का आरक्षण तय है. संवैधानिक रूप से 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण किसी भी दशा में नहीं दिया जा सकता. इस लिहाज से देखे तो पंचायत चुनाव में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को 28 प्रतिशत से ज्यादा का आरक्षण नहीं मिल सकता.

माना जा रहा है कि उप समिति ने एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण कर लिया है. इस पर अंतिम निर्णय भी ले लिया है. ऐसे में मंत्रिमंडलीय उप समिति द्वारा ओबीसी आरक्षण को लेकर समर्पित आयोग की रिपोर्ट पर लिए गए निर्णय से जुड़ी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी जाएगी. उम्मीद है कि मंत्रिमंडलीय उप समिति सोमवार को अपनी रिकमेंडेशन मुख्यमंत्री को सौंपेगी. हालांकि इसके बाद अंतिम निर्णय प्रस्ताव के रूप में 11 जून को होने वाली कैबिनेट की बैठक में रखा जा सकता है. जिस पर अंतिम फैसला होगा.

जानिए ओबीसी पर क्या हो सकती है आरक्षण की स्थिति- उत्तराखंड में पंचायतों के लिए ओबीसी आरक्षण की स्थिति कई फार्मूलों से तय हो सकती है. इसमें सबसे सामान्य फार्मूला अलग-अलग सीटों पर प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर पर लागू करने से जुड़ा है. यानी जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए प्रदेश स्तर पर ओबीसी जनगणना को आधार बनाया जा सकता है. इसी तरह जिला पंचायत सदस्य और ब्लॉक प्रमुखों के लिए जिले में ओबीसी जनगणना को आधार बना सकते हैं. जबकि बीडीसी मेंबर्स और ग्राम स्तर पर आरक्षण की स्थिति ब्लॉक में मौजूद ओबीसी जनगणना के आधार पर हो सकती है. जाहिर है कि 2011 के बाद अभी जनगणना नहीं हुई है इसलिए ओबीसी की संख्या को 2011 की जनगणना के आधार पर ही माना जाएगा.

राज्य में पंचायत चुनाव हरिद्वार जिले को छोड़कर बाकी 12 जिलों में होने हैं. राज्य स्थापना के बाद से ही हरिद्वार जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश के साथ होते हैं, जबकि बाकी 12 जिलों के पंचायत चुनाव के लिए फैसला होना बाकी है. त्रिस्तरीय पंचायतो के प्रतिनिधियों का कार्यकाल काफी पहले ही खत्म हो चुका है. जिसके बाद इन्हें राज्य सरकार द्वारा 6 महीने का विस्तार भी दिया गया था, लेकिन यह 6 महीने भी खत्म होने के बाद अब तक राज्य में पंचायत चुनाव नहीं कराई जा सके हैं.इसीलिए इसे एक संवैधानिक संकट के रूप में देखा जा रहा है

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